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ग़ज़ल
तनासुख़ है मुसलसल इब्तिदा-ए-आफ़रीनश में
हयात-ए-जावेदाँ में कौन दख़्ल-अंदाज़ होता है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
वो मोमिन भी है माँगेगा दुआ सिद्क़-तनासुख़ की
तिरे हाथों से मरना जिस को ऐ क़ातिल पसंद आया
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
वस्ल ओ हिज्राँ में तनासुब रास्त होना चाहिए
इश्क़ के रद्द-ए-अमल का मसअला छेड़ूँगा मैं
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
बुरा लगता है हम को इक तनासुब का बिगड़ जाना
कुछ ऐसे लोग हैं जिन को भुला अच्छा नहीं लगता
अतीक़ असर
ग़ज़ल
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
पुख़्तगी समझे हुए हैं जो तनासुब को फ़क़त
चाहिए इस्लाह उन को इस ख़याल-ए-ख़ाम की