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ग़ज़ल
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
मिरी कमज़ोरियों पर जब कोई तन्क़ीद करता है
वो दुश्मन क्यूँ न हो उस से मोहब्बत और बढ़ती है
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
तन्क़ीद करने वालों पे हँसना पड़ा हमें
मुश्किल वो चाहते हमें मुश्किल न होंगे हम
मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी
ग़ज़ल
ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगी
न अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जाना