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ग़ज़ल
उड़ा दीं धज्जियाँ क़ानून-ए-ताज़ीरात की हम ने
जराएम की फ़रावानी जो पहले थी वो अब भी है
रूमाना रूमी
ग़ज़ल
इक जुर्म और फ़र्द-ए-जराएम में बढ़ गया
या'नी न दर्द-ए-दिल का हो इज़हार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इस लिए हो गई ज़रख़ेज़ जराएम की ज़मीं
मुजरिमों के लिए दुनिया में सज़ा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
क्यूँ हो शर्मिंदा वो इंसाँ के जराएम पर यूँ
क्यूँ ज़मीं शब की सियाही में रिदा-पोश रही
दिव्या जैन
ग़ज़ल
जराएम के बगूले रफ़्ता रफ़्ता बन गए तूफ़ाँ
फ़सील-ए-शहर पर टूटा अज़ाब आहिस्ता आहिस्ता