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ग़ज़ल
इज्ज़-ए-गुनाह के दम तक हैं इस्मत-ए-कामिल के जल्वे
पस्ती है तो बुलंदी है राज़-ए-बुलंदी पस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जल्वे बेताब थे जो पर्दा-ए-फ़ितरत में 'जिगर'
ख़ुद तड़प कर मिरी चश्म-ए-निगराँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
किया आईना-ख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने
करे जो परतव-ए-ख़ुर्शीद आलम शबनमिस्ताँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
क्या तसर्रुफ़ है तिरे हुस्न का अल्लाह अल्लाह
जल्वे आँखों से उतर कर दिल-ओ-जाँ तक पहुँचे