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ग़ज़ल
देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव
फूल जाते हैं जवानान-ए-चमन के हाथ पाँव
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
ये क़त्ल-ए-ख़िज़ाँ पर हैं जवानान-ए-चमन शाद
हर सम्त गुल-ओ-लाला उड़ाते हैं निशाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
निकली न ख़ुम से बज़्म-ए-जवानान-ए-मस्त में
पीर-ए-मुग़ाँ का बिन्त-ए-इनब ने किया लिहाज़
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
बहार आई है गुलशन ने क़बा-ए-सब्ज़ बदली है
जवानान-ए-चमन के सर पे है दस्तार फूलों की
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
सूरत-ए-बर्क़-ए-तपाँ शो'ला-फ़गन उठ्ठे हैं
अज़्म-ए-नौ ले के जवानान-ए-वतन उठ्ठे हैं