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ग़ज़ल
ये हुस्न-ए-ख़त्म-ए-सफ़र ये तिलिस्म-ख़ाना-ए-रंग
कि आँख झपकूँ तो मंज़र नया है मेरे लिए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
बे-तरह बोझ से झुमकों के झुके पड़ते हैं
कीजो अल्लाह तू उन झुमकों की और कान की ख़ैर
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अब कहाँ मायूसियों में झलकियाँ उम्मीद की
वो भी क्या दिन थे कि तेरा ग़म गवारा हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़माँ मकाँ है फ़क़त मद्द-ओ-जज़्र-ए-जोश-ए-हयात
बस एक मौज की हैं झलकियाँ क़रार-ओ-सबात