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ग़ज़ल
अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडा
तो आ लिपटिए गले से ऐ जाँ झमक से कर झप चराग़ ठंडा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
भरे जोबन पे इतराती झमक अंगिया की दिखलाती
कमर लहंगे से बल खाती लटक घूँघट की भारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वो कान ख़ूबी में छक रहे हैं जवाहरों में झमक रहे हैं
इधर को झुमके झमक रहे हैं उधर का बाला चमक रहा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तिरे हुस्न-ए-तजल्ली का जहाँ ज़र्रा झमक जावे
तो फिर मूसा कोई वाँ ताब ला सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिखला के झमक जाते रहे दम में 'नज़ीर' आह
क्या जाने वो दिन बर्क़ थे या मिस्ल-ए-शरर थे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ
बाग़ में जा के सर्व को क़द की लचक दिखा कि यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क़यामत है झमक बाज़ू के तावीज़-ए-तलाई की
हिसार-ए-हुस्न कूँ क़ाइम किया बानी है ये लड़का
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-रा'ना
कि ख़ुर उस के हुस्न-ए-रुख़ को लगा तकने ज़र्रा-आसा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क़यामत आन है इस वक़्त में उन पर नज़ाकत की
देखो आई हैं दिखने किस झमक सीं ये छिनाल अँखियाँ
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
शब-ए-मह में देख उस का वो झमक झमक के चलना
किया इंतिख़ाब मह ने ये चमक चमक के चलना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुखड़े की झमक साजन टुक हम को भी दिखलाओ
गर आगे रक़ीबों के झमकाना हुआ तो क्या