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ग़ज़ल
दूर से झुण्ड परिंदों का लगते हैं ख़ेमे वालों को
किस अंदाज़ का आना है ये आग छिड़कते तीरों का
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
क़दम क़दम पे है रक़्साँ उदासियों का झुण्ड
नफ़स नफ़स में उतरता है सिसकियों का झुण्ड
ग़ौसिया ख़ान सबीन
ग़ज़ल
फिरें हैं बाल-फ़िशाँ बुलबुलों के झुण्ड के झुण्ड
भली लगे है किसे सैर-ए-बोस्ताँ तन्हा
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
ग़ज़ल
ढोल की थाप पे रक़्स कुनाँ है झुण्ड इक ठंडी छाँव का
हाड़ महीने आन लगा है मेला मेरे गाँव का