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ग़ज़ल
कभी भूके पड़ोसी की ख़बर तो ली नहीं उस ने
मगर करने वो उमरा और हज हर साल जाता है
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
ग़ज़ल
मोहब्बत जू-ए-शीर-ए-कुन मोहब्बत सलसबील-ए-हक़
मोहब्बत अब्र-ए-रहमत है मोहब्बत हौज़-ए-कौसर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
हर रोज़ माँ का चेहरा में तकता हूँ प्यार से
हर रोज़ हज मैं करता हूँ एहराम के बग़ैर