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ग़ज़ल
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तिरे ख़ानुमाँ-ख़राबों का चमन कोई न सहरा
ये जहाँ भी बैठ जाएँ वहीं इन की बारगाहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
गर्द का सारा ख़ानुमाँ है सर-ए-दश्त-ए-बे-अमाँ
शहर हैं वो जो हर तरह गर्द की ख़िदमतों में हैं
जौन एलिया
ग़ज़ल
जल गई शाख़-ए-आशियाँ मिट गया तेरा गुल्सिताँ
बुलबुल-ए-ख़ानुमाँ-ख़राब अब कहीं तेरा घर भी है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
तुम्हीं हो ता'ना-ज़न मुझ पर तुम्हीं इंसाफ़ से कह दो
कोई अपनी ख़ुशी से ख़ानमाँ-बर्बाद होता है