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ग़ज़ल
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
मु'आफ़ कर मिरी मस्ती ख़ुदा-ए-अज़्ज़ा-व-जल
कि मेरे हाथ में साग़र है मेरे लब पे ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
आफ़्ताब शकील
ग़ज़ल
है नस्ब में आली अगर रखता न हो इल्म-ओ-हुनर
इक ढेर से भी है बतर वो ज़ात है किस काम की
मिर्ज़ा अज़फ़री
ग़ज़ल
महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर
ख़्वाब का आलम रेज़ा रेज़ा चश्म-ए-मंज़र से बाहर
ज़काउद्दीन शायाँ
ग़ज़ल
बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का
कि उम्र-ए-ख़िज़्र से बेहतर है एक इक दम जवानी का