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ग़ज़ल
आलम-ए-हुस्न ख़ुदा-दाद-ए-बुताँ है कि जो था
नाज़-ओ-अंदाज़ बला-ए-दिल-ओ-जाँ है कि जो था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
है इश्क़ वो नेमत जो ख़रीदी नहीं जाती
ये शय है ख़ुदा-दाद ख़ुदा-दाद रहेगी
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
ये है सूरत इसे कहते हैं ख़ुदा-दाद जमाल
हूरों से है तिरी तस्वीर का ख़ाका अच्छा
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-आरास्ता क़ुदरत का अतिय्या है मगर
क्या मिरा इश्क़-ए-जिगर-सोज़ ख़ुदा-दाद नहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
फिर मैं भी करूँ क्यूँ न 'हफ़ीज़' इस पे तसल्लुत
जागीर नहीं तब-ए-ख़ुदा-दाद किसी की
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
सुख़न में अपने ख़ुदा-दाद है ये हुस्न-ए-बुताँ
कि ख़ार मुर्ग़-ए-चमन को है ख़ुश-नवाई का