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ग़ज़ल
हमारी क़ौम पर तारी है गहरी नींद कुछ ऐसी
कि जैसे ख़्वाब में डूबे हुए ख़रगोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ग़लत अंदाज़ा था ख़रगोश का कछवे के बारे में
पहुँचना है पहुँच जाएँगे काहिल से ज़रा पहले
नज़्र फ़ातमी
ग़ज़ल
कहीं ख़रगोश बन कर ख़्वाब सोते ही न रह जाएँ
सफ़र में देर तक आराम भी अच्छा नहीं होता
अरशद रसूल बदायूनी
ग़ज़ल
झाड़ी झाड़ी सूँघ रहा हूँ कोई भी ख़रगोश नहीं
कुत्तों जैसे पैर कहाँ से हर झाड़ी तक आए हैं