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ग़ज़ल
अपनी ज़ात के सारे ख़ुफ़िया रस्ते उस पर खोल दिए
जाने किस आलम में उस ने हाल हमारा पूछा था
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
तलाश-ए-यार में ख़ुफ़िया गए उश्शाक़ दुनिया से
ख़बर भी की न हम को शौक़-ए-मंज़िल हम भी रखते थे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
क्यूँकर किसी के रोज़-ए-जज़ा छुप सकेंगे जुर्म
ख़ुफ़या-नवीस दो-दो हैं हर इक बशर के साथ
नवाब उमराव बहादूर दिलेर
ग़ज़ल
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार
शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से