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ग़ज़ल
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म ये है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़्साने का
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
इक आह-ए-सर्द भर लेता हूँ जब तुम याद आते हो
ख़ुलासा किस क़दर मैं ने किया है रंज-ए-फ़ुर्क़त का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
ज़िंदगी का है ख़ुलासा वही इक लम्हा-ए-शौक़
जो तिरी याद में ऐ जान-ए-जहाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
यही मय-कदा का ख़ुलासा है यही मस्तियों का निचोड़ भी
तिरी चशम-ए-बादा-फ़रोश में ये जो एक कैफ़-ए-तमाम है
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
सफ़हा दिल मिरा आईना-ए-रम्ज़-ए-तौहीद
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा मिरे अफ़्साने का
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
कुछ पता उन को चले हम पे गुज़रती क्या है
अपने इक आध सही ग़म का ख़ुलासा लिक्खें
सुलैमान अतहर जावेद
ग़ज़ल
मरने पे भी कटा न अज़ाब-ए-ग़म-ए-फ़िराक़
कुंज-ए-लहद ख़ुलासा-ए-शब-हा-ए-तार था