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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
किया ग़म-ख़्वार ने रुस्वा लगे आग इस मोहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तज दिया तुम ने दर-ए-यार भी उकता के 'फ़राज़'
अब कहाँ ढूँढने ग़म-ख़्वार तुम्हारे जाएँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़याल उन का परे है अर्श-ए-आज़म से कहीं साक़ी
ग़रज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मय-ख़्वार बैठे हैं