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ग़ज़ल
मैं वो आदम-गज़ीदा हूँ जो तन्हाई के सहरा में
ख़ुद अपनी चाप सुन कर लर्ज़ा-बर-अंदाम हो जाए
शकेब जलाली
ग़ज़ल
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
इस बख़्त-ए-ना-रसा से अज़िय्यत-कशीदा हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
सरवर आलम राज़
ग़ज़ल
शो'ला-ब-कफ़ सा'अतों की सुर्ख़ी नज़र आ रही है
ज़ुल्मत-गज़ीदा निगाहें ख़ुश हैं सहर आ रही है