आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "خیبر"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "خیبر"
ग़ज़ल
ए'जाज़ शेर-ए-हक़ का दिखाने के वास्ते
अज़दर ब-कफ़ हुई कभी ख़ैबर-ब-कफ़ हवा
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
ग़ज़ल
आइंदा मर्हबों से उलझना नहीं कभी
ख़ैबर से क्या सबक़ यही हासिल किया गया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "خیبر"
ए'जाज़ शेर-ए-हक़ का दिखाने के वास्ते
अज़दर ब-कफ़ हुई कभी ख़ैबर-ब-कफ़ हवा
आइंदा मर्हबों से उलझना नहीं कभी
ख़ैबर से क्या सबक़ यही हासिल किया गया