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ग़ज़ल
अपनों के सितम याद न ग़ैरों की जफ़ा याद
वो हँस के ज़रा बोले तो कुछ भी न रहा याद
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अपनों के सितम याद न ग़ैरों की जफ़ा याद
वो हँस के ज़रा बोले तो कुछ भी न रहा याद