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ग़ज़ल
दर्द-ए-हिज्राँ से ब-तंग आपी हूँ नासेह से कहो
ज़ख़्म पर मेरे न छिड़के ये दबंग और नमक
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हवा में उड़ के सैर-ए-आलम-ए-ईजाद करते हैं
फ़रिश्ते दंग हैं वो काम आदम-ज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मिरे चार-दांग थी जल्वागर वही लज़्ज़त-ए-तलब-ए-सहर
मगर इक उम्मीद-ए-शिकस्ता-पर कि मिसाल-ए-दर्द सियाह थी
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
गुलज़ार में जो दूर गुल-ए-लाला-रंग हो
वो बे-हिजाबियाँ हों कि नर्गिस भी दंग हो