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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
आया है चमन में मौसम-ए-गुल आई हैं हवाएँ ज़िंदाँ तक
दीवार की बातें हो लेंगी इस वक़्त तो दर की बात करो
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले