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ग़ज़ल
दिल को अब आने लगा क़त्ल-गह-ए-नाज़ में लुत्फ़
और बिस्मिल करे ऐ हज़रत-ए-'बिस्मिल' कोई
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
हाँ बिखरने दे तसल्ली से दिल-ए-बिस्मिल मुझे
ऐ धड़कते दिल ठहर जा मिल गई मंज़िल मुझे
सरफ़राज़ बज़्मी
ग़ज़ल
बिस्मिल चलेंगे आज दर-ए-यार तक ज़रूर
पज़मुर्दा दिल को तेरे गुल-ए-तर बनाएँगे
सय्यद अमीनुल हसन मोहानी बिस्मिल
ग़ज़ल
मुस्कुराता है हर इक ज़ख़्म दिल-ए-बिस्मिल का
हँस के क़ातिल ने भी अरमान निकाले होंगे
जुंबिश ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़ुश्क फिर होने लगे ज़ख़्म दिल-ए-बिस्मिल के
अपनी चाहत की नमी दे के उन्हें तर कर दे
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
दिल-ए-बिस्मिल में कुछ इस तरह हुए थे पैवस्त
टूट कर निकले हैं पैकान बड़ी मुश्किल से
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
क्या तड़पना दिल-ए-बिस्मिल का भला लगता है
कि जब उछले है तिरे सीने से जा लगता है