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ग़ज़ल
गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोह ओ बयाबाँ में
कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कार-ए-आशियाँ-बंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
है मिरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील
जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दुनिया में एहतिराम के क़ाबिल वो लोग हैं
ऐ ज़िल्लत-ए-वफ़ा तिरी इज़्ज़त जिन्हों ने की
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ज़ार मज़ा देख लिया उल्फ़त का
हम न कहते थे कि इस काम में ज़िल्लत होगी
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
इश्क़ में ज़िल्लत हुई ख़िफ़्फ़त हुई तोहमत हुई
आख़िर आख़िर जान दी यारों ने ये सोहबत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अना के सिक्के होते हैं फ़क़ीरों की भी झोली में
जहाँ ज़िल्लत मिले उस दर पे जाना छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
अगरचे माल-ए-दुनिया हाथ भी आया हरीसों के
तो देखा हम ने किस किस ज़िल्लत-ओ-ख़्वारी से हाथ आया