आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "رائج"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "رائج"
ग़ज़ल
जुज़्व-ए-तबीअ'त बन जाएँ तो जौर करम हो जाते हैं
लुत्फ़ न अब राइज फ़रमाएँ सिर्फ़ सितम ईजाद करें
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हम दानिस्ता तुम को भुलाएँ तुम मुतवातिर याद करो
यूँ दुनिया-ए-इश्क में राइज एक नया दस्तूर करें
रवेन्द्र जैन
ग़ज़ल
हर इक रिश्ता यहाँ क़ाएम है बस मतलब परस्ती पर
ज़माने में यही राइज है कल्चर लोग कहते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
ये मेरा कुंज-ए-मकाँ मेरा क़स्र-ए-आली है
मैं अपना सिक्का-ए-राएज यहीं पे ढालता हूँ
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
अब इख़्तियार-ए-तबद्दुल भी हो गया हासिल
तो अब गुलिस्ताँ में राइज नया निज़ाम करें
रुख़्सार नाज़िमाबादी
ग़ज़ल
एक पल हूँ सिक्का-ए-राएज ब-तुज़्क-ओ-एहतिशाम
दूसरे पल कौड़ियों के मोल बिक जाने को हूँ
नसीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
राइज है ज़बाँ-बंदी का दस्तूर चमन में
बुलबुल को कहीं ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ मार न डाले