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ग़ज़ल
गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वाँ तुझे
पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
ये रुत्बा हर किसी को कू-ए-जानाँ में नहीं मिलता
कोई मंसूर हो तो दार पर लटकाया जाता है
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
पानी देने से निहाल-ए-क़द-ए-बाला बढ़ जाए