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ग़ज़ल
ये आना कोई आना है कि बस रस्मन चले आए
ये मिलना ख़ाक मिलना है कि दिल से दिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
शबीना अदीब
ग़ज़ल
याद दुआओं में रखोगे रस्मन कह तो देते हो
किस ने किस को याद किया है रस्मी याद-दहानी से
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
इस ज़माने की यही एक हक़ीक़त है 'ज्योति'
लोग रस्मन ही सही दिल से निभाते भी नहीं