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ग़ज़ल
सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
इस रूमाल को काम में लाओ अपनी पलकें साफ़ करो
मैला मैला चाँद नहीं है धूल जमी है आँखों में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
गुदगुदी कर के हँसाते हैं जो ग़श में अहबाब
किस के रूमाल से तलवे मिरे सहलाते हैं