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ग़ज़ल
क्यूँ साज़-ओ-बर्ग-ए-हस्ती करता है तू मुहय्या
दुनिया को है अज़ल से ज़ौक़-ए-फ़ना-परस्ती
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
नाज़नीं नाज़-आफ़रीं नाज़ुक-बदन नाज़ुक-मिज़ाज
ग़ुंचा-लब रंगीं-अदा शक्कर-दहाँ शीरीं-सुख़न
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तेग़ से तजरीद के ले काम हो फ़ारिग़-नशीं
अस्ल में हो वस्ल हैं सब फ़र-ए-ग़ुन्चा बर्ग-ओ-शाख़