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ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
हज़ारों रंज इस में 'अर्श' लाखों कुल्फ़तें इस में
मोहब्बत को सुरूद-ए-ज़िंदगानी कौन कहता है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
सुरूद-ए-इश्क़ में नग़्मात-ए-सह्र शामिल हैं
तिरी ख़बर भी मिरी दास्ताँ से मिलती है