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ग़ज़ल
मुख़्तार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बुलबुल ही सिसकती न थी कुछ बाग़ में तुझ बिन
शबनम गुलों के मुँह में चुवाती रही पानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
जाँ सिसकती रही ख़्वाहिश के बयाबानों में
शौक़-ए-हर-लहज़ा का आज़ार भी बाक़ी न रहा