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ग़ज़ल
धुँदलाई हुई शामों में कोई परछाईं सी फिरती रहती है
मैं आहट सुनती हूँ जिस की वो वहम नहीं साया भी नहीं
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
सात सुरों की लहरों पे हलकोरे लेते फूल से हैं
इक मदहोश फ़ज़ा सुनती है इक चिड़िया के गाने को
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
झिलमिलाते हैं सितारे रात को पलकों पे जब
चाँद से सुनती हो मेरी दास्ताँ अच्छी तो हो
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
कहाँ तन्हाई घर की अब किसी से बात करती है
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
दो निगाहें कहती हैं दो निगाहें सुनती हैं
किस क़दर मोहब्बत पर मेहरबाँ है ख़ामोशी
प्रेयस हाथी "राक़िम"
ग़ज़ल
न जाने मुंतज़िर किस की है इक नादान सी लड़की
कोई आहट जो सुनती है दरीचा खोल देती है
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
उन्हें दिल की सदाओं पर भला कैसे यक़ीं होगा
ये आँखें तो वही सुनती हैं जो मंज़र बताते हैं