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ग़ज़ल
हवा बातिल की फिर अब सनसनाती है ज़माने में
हिरासाँ क्यों है तू रख कर यक़ीं मोहकम मिरे हमदम
मोहम्मद सालिम
ग़ज़ल
सुर्ख़ियाँ अख़बार की जब देख लेता हूँ कभी
तन-बदन में सनसनाती हैं मिरी मायूसियाँ
विपिन सुनेजा शायक़
ग़ज़ल
ज़हीन इतनी है उस से बहस तो हम कर नहीं सकते
मुझे मंटो के अफ़्साने बिला-नाग़ा सुनाती है
अज़ीम कामिल
ग़ज़ल
कैफ़ियत दिल की सुनाती हुई एक एक निगाह
बे-ज़बाँ हो के भी वो माइल-ए-गुफ़्तार आँखें