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ग़ज़ल
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
तुझे अब भी मेरे ख़ुलूस का न यक़ीन आए तो क्या करूँ
तिरे गेसुओं को सँवार कर तुझे आइना भी दिखा दिया
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
तिरी राह कितनी तवील है मिरी ज़ीस्त कितनी क़लील है
मिरा वक़्त तेरा असीर है मुझे लम्हा लम्हा सँवार दे
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आइना तुझे आइने में उतार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वा'दों को ख़ून-ए-दिल से लिखो तब तो बात है
काग़ज़ पे क़िस्मतों को सँवार आए ये नहीं