आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "سنگ_اسود"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "سنگ_اسود"
ग़ज़ल
सद एहतिराम के क़ाबिल वो संग-ए-असवद है
ज़मीं पे उस के मुक़ाबिल का कोई संग न हो
मोहम्मद इक़बाल अहमद
ग़ज़ल
और क्या का'बे में मिलता संग-ए-असवद के सिवा
ढूँढता था जिस को तू ज़ाहिद वो बुत-ख़ाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
अल्लाह-रे उस की चौखट है बोसा-गाह-ए-आलम
कहता है संग-ए-असवद मैं संग-ए-आस्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
संग-ए-असवद का है इक बुत संग-ए-मरमर का है एक
बरहमन ये तो बता किस बुत पे तुझ को नाज़ है
मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
है ये ग़म जाँ-काह ख़ाल-ए-अबरू-ए-ख़मदार का
का'बे में काहीदा हो कर संग-ए-असवद दिल हुआ
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
न घबरा तीरगी से तू क़सम है संग-ए-असवद की
कि तारीकी ही में सोई है शाम-ए-गेसू-ए-लैला
शफ़ीक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
अक़ीदत से सर-ए-मोमिन झुका है संग-ए-असवद पर
इसी को इत्तिहाद-ए-काबा-ओ-बुत-ख़ाना कहते हैं
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
सुवैदा को मिरे निस्बत बहुत है संग-ए-असवद से
मगर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-मोहम्मद से ज़ियादा है
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
आस्ताँ-बोसी की लज़्ज़त अस्वद-ए-का'बा से पूछ
संग समझा है जिसे तू आरिज़-ए-जानाना है