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ग़ज़ल
जिस दिन कि उस के मुँह से बुर्क़ा उठेगा सुनियो
उस रोज़ से जहाँ में ख़ुर्शीद फिर न झाँका
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़राबी कुछ न पूछो मुलकत-ए-दिल की इमारत की
ग़मों ने आज-कल सुनियो वो आबादी ही ग़ारत की
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
टुक सुनियो ज़मज़मे मिरे दिल के कि बाग़ में
कब इस तरह का मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ है दूसरा
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ