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ग़ज़ल
धरती तेरी गहराई में होंगे मीठे सोत मगर
मैं तो सर्फ़ हुआ जाता हूँ कंकर पत्थर ढोने में
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
तू कच्चे सूत का धागा अबस बल पेच खाता है
ये सब वहम-ए-ग़लत है और क़ुसूर-ए-फ़हम तेरा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ठिठुरी चाहत लावा जज़्बे हिज्र-मशक़्क़त बस से बाहर
दिल-चर्ख़े पर सूत तुम्हारी यादों का मैं कातूं कैसे
नदीम असग़र
ग़ज़ल
मिरे हिस्से में कैसे सौत की तक़दीर आ जाए
तुम्हारे काम की वो है मियाँ तुम उस के क़ाबिल हो