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ग़ज़ल
सू लिख लिख कर परेशाँ हो क़लम लट आप कहते हैं
मुक़ाबिल ऊस के होसे न लिखेंगे गर दो लक मिसरा
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले