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ग़ज़ल
جانم کہے اے شہ پری یک زہرا دسرا مشتری
توں سیام ہوں تیرے چرنی کہتا ہوں راسک راس میں
सय्यद शाह बुरहानुद्दी जानम
ग़ज़ल
किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया