aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سیر"
फिर गर्म-नाला-हा-ए-शरर-बार है नफ़समुद्दत हुई है सैर-ए-चराग़ाँ किए हुए
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत हैसो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमनन सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए
दरिया की सैर करने अकेले चले गएशाम-ए-शफ़क़ की आप ही तहसीन हम ने की
तेवर तिरे ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैंहम शाम से आसार-ए-सहर देख रहे हैं
दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन केसुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं
कल सैर किया हम ने समुंदर को भी जा करथा दस्त-ए-निगर पंजा-ए-मिज़्गाँ की तरी का
साल होने को आया है वो कब लौटेगाआओ खेत की सैर को निकलें कूजें देखें
सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर कोहाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैंअजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
सय्याद-ए-गुल-एज़ार दिखाता है सैर-ए-बाग़बुलबुल क़फ़स में याद करे आशियाना क्या
गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैंइस बगिया के भेद न खोलो सैर करो ख़ामोश रहो
तुझ को देखा तो सेर-चश्म हुएतुझ को चाहा तो और चाह न की
चाँदनी रात में फूलों की सुहानी रुत मेंजब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊँगा
सैर-ए-महताब-ओ-कवाकिब से तबस्सुम ता-बकेरो रही है वो किसी की शम-ए-तुर्बत देखिए
सैर भी जिस्म के सहरा की ख़ुश आती है मगरदेर तक ख़ाक उड़ाना भी नहीं चाहता है
सफ़र-ए-मंज़िल-ए-शब याद नहींलोग रुख़्सत हुए कब याद नहीं
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हमगहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम
आप तो हू-ब-हू वही हैं जोमेरे सपनों में सैर करता है
तू हम-सफ़र नहीं है तो क्या सैर-ए-गुलसिताँतो हम-सुबू नहीं है तो फिर क्या शराब पी
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