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ग़ज़ल
फूल सी बातें फूल सा लहजा फूल से लब थे फूल से गाल
लेकिन शाख़-ए-बदन के सारे ख़ार बहुत नोकीले थे
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
रिश्ता भी है नश्व-ओ-नुमा का फ़र्क़ भी रौशन लम्हों का
सब्ज़ सरापा शाख़-ए-बदन और जंगल की हरियाली में