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ग़ज़ल
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है
जो कह सका था वो कह चुका हूँ जो रह गया है वो शाइरी है
अहमद सलमान
ग़ज़ल
शायरी में 'मीर' ओ 'ग़ालिब' के ज़माने अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन