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ग़ज़ल
ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
वही बात जो वो न कह सके मिरे शेर-ओ-नग़्मा में आ गई
वही लब न मैं जिन्हें छू सका क़दह-ए-शराब में ढल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
आरज़ूओं का शबाब और मर्ग-ए-हसरत हाए हाए
जब बहार आए गुलिस्ताँ में तो मुरझाता हूँ मैं
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
ये तिरा जमाल-ए-कामिल ये शबाब का ज़माना
दिल-ए-दुश्मनाँ सलामत दिल-ए-दोस्ताँ निशाना