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ग़ज़ल
तिरा दीदार हो आँखें किसी भी सम्त देखें
सो हर चेहरे में अब तेरी शबाहत चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ग़ज़ल
तो फिर यूँ है कि मैं ने उस को चाहा ही नहीं 'ताबिश'
अगर उस की शबाहत का गुमाँ मुझ पर नहीं होता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
किस की बू पा कर चमन में चार दिन ठहरी बहार
रम गई फूलों में बू किस की शबाहत देख कर
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
शबाहत पे अदाकारी असर-अंदाज़ होती है
अभी तक तो ये चेहरा है कहीं ग़ाज़ा न हो जाए