aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अपनी पलकों से उस के इशारे उठाओस की उँगलियों से शरारे उठा
तू अरबों की खरबों की बातें करेअदद कौन इतने शुमारे तिरे
राख हो जाए मोहब्बत की हवेली पल मेंइक तबाही मैं शरारे से उठा सकती हूँ
काम आएँगी किसी रोज़ ये मेरी ग़ज़लेंपास रखना ये मिरे ग़म के शुमारे सारे
जनवरी की सर्दियों में एक आतिश-दाँ के पासघंटों तन्हा बैठना बुझते शरारे देखना
काएनात और तिरी वुस'अतें समझेंगे कहाँएक गोले पे तिरे चंद शुमारे हुए लोग
ख़त्म होते नहीं चाहत के शुमारे अब तकतुम को पूरा नहीं पढ़ पाते तुम्हारे अब तक
चापलूसी और ख़ुशामद से इबारत जो भी हैंसाफ़ कहती है 'तबस्सुम' ये शुमारे मुस्तरद
'शान' अब राह देखी जाती हैरंग के हर नए शुमारे की
है जिन का हुस्न शो'ला-बार याँ परवो लोगों में शरारे बेचते हैं
निगार-ए-शब की सुबुक-गामियों पे मरते हुएरगों में दौड़ रहे हैं शरारे अपनी जगह
'श'ऊर' तेज़ रही ज़िंदगी की दौड़ इतनीकि हार जीत शुमारे बग़ैर बीत गई
इक तिरा तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल दाइमहिज्र के सारे शुमारे रौशन
जब गर्म पानियों से मिरी गुफ़्तुगू हुईतो बर्फ़ के बदन से शरारे निकल पड़े
तू कि यकता था बे-शुमार हुआहम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ
अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिददाना दाना शुमार कौन करे
न आए राह पे वो इज्ज़ बे-शुमार कियाशब-ए-विसाल भी मैं ने तो इंतिज़ार किया
ये क़ुर्ब क्या है कि तू सामने है और हमेंशुमार अभी से जुदाई की साअ'तें करनी
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली कोये जानता है कि इस दिखावे से दिल-जलों में शुमार होगा
ऐ 'शुमार' आँखें इसी तरह बिछाए रखनाजाने किस वक़्त वो आ जाए पता कुछ भी नहीं
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