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ग़ज़ल
हंगामा बपा हश्र का ऐ दोस्तो जब हो
साक़ी-ए-गुल-अंदाम हो और बिन्त-ए-इनब हो
मोहम्मद शम्सुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
वो लज़्ज़तों पे लज़्ज़तें पाई हैं दीद की
बे-कैफ़ हो के रह गईं सब ख़ुशियाँ ईद की
मोहम्मद शम्सुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
मोहम्मद शम्सुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
जब से किसी सनम का अफ़्साना जानते हैं
हर संग-ओ-ख़िश्त को हम बुत-ख़ाना जानते हैं
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
दश्त में आवारा हम को शहर में रुस्वा किया
क्या कहें तुम से सुलूक इस इश्क़ ने क्या क्या किया
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
हर बरहमन भी दीद का मुश्ताक़ है सो है
उस बुत को पास-ए-ख़ातिर-ए-उश्शाक़ है सो है
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
जल्वा दिखलाती है वहशत गर्दिश-ए-तक़दीर का
शो'ला-ए-जव्वाला हल्क़ा है मिरी ज़ंजीर का
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
मैं शहीद-ए-नाज़ हूँ मस्कन मिरा मदफ़न हुआ
आक़िबत मेरा कफ़न मेरा ही पैराहन हुआ
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
हो गए हैं इन दिनों कुछ अक़्ल से मा'ज़ूर हम
है जो नज़दीक अपने उस को जानते हैं दूर हम
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
पेश-ए-नज़र है नज़्अ' में नक़्शा-निगार का
जल्वा ख़िज़ाँ दिखाती है मुझ को बहार का