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ग़ज़ल
होता है शीशा-ए-दिल चूर उस की गुफ़्तुगू से
यारब ये पंद-ए-नासेह या संग-ए-मोहतसिब है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
निगाह के शोख़-पन को बेगानगी का आसेब डस गया है
मुग़एरत का फ़ुसूँ-ज़दा दिल जुनूँ के शायाँ रहा नहीं है
अनवर अलीमी
ग़ज़ल
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ
जिस्मों की इस शहर-ए-पनाह में ताज़ा शहर बसाओ
अली अकबर अब्बास
ग़ज़ल
हमें ख़बर थी शहर-ए-पनाह पर खड़ी सिपाह मुनाफ़िक़ है
हमें यक़ीं था नक़ब-ज़नों से ये दस्ता मिल जाएगा
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
एक तो मैं आप नासेह हूँ परेशाँ ख़स्ता-जाँ
दिल दुखा देती है तेरी पिंद-ए-बेजा और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
न दो ऐ गुल-रुख़ाँ तकलीफ़ मुझ को शेर-ख़्वानी की
कहो बिन फ़स्ल-ए-गुल कोई करे दीवाना-पन क्यूँ कर