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ग़ज़ल
शहर-ए-तरब में बेचैनी के पहलू कौन ख़रीदेगा
दश्त-ए-जाँ की ख़ातिर ग़म के आहू कौन ख़रीदेगा
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें रस्ता दिखा देती हैं वर्ना यारो
दिल वो ज़र्रा है जिसे शहर-ए-तलब याद नहीं