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ग़ज़ल
उमीदें मिल गईं मिट्टी में दौर-ए-ज़ब्त-ए-आख़िर है
सदा-ए-ग़ैब बतला दे हमें हुक्म-ए-ख़ुदा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
हो चुकी है गुम सदा-ए-बाज़गश्त-ए-ग़ैब भी
पत्थरों को अब कोई नक़्श-ए-नवा देने से क्या
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
چمک تيري عياں بجلي ميں ، آتش ميں ، شرارے ميں
جھلک تيري ہويدا چاند ميں ،سورج ميں ، تارے ميں