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ग़ज़ल
दो बोसे या लग लो गले तब गालियाँ मीठी लगें
गर वो नहीं और ये नहीं सलवात है किस काम की
मिर्ज़ा अज़फ़री
ग़ज़ल
हाँ मगर सलवात पढ़ना देख तुझ को दम-ब-दम
और क्या रखते हैं तेरी शान के शायान हम
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
हम मुज़न्निबों में सिर्फ़ करम से है गुफ़्तुगू
मज़कूर ज़िक्र याँ नहीं सौम-ओ-सलात का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गुज़रे जो सू-ए-ख़ानक़ाह वाँ भी बशक्ल-ए-जानमाज़
अहल-ए-सलाह-ओ-ज़ुहद को फ़र्श किया बिछा दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हम तो मर जाएँ जो इक दम ये करें सौम-ओ-सलात
क्यूँ कि जीते हैं वो जो आप के मिक़्ताद हैं शैख़
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
दिल की मस्जिद में तिरी याद है पाबंद-ए-सलात
इस नमाज़ी ने हमें ग़म के सिवा कुछ न दिया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
सलात-ए-शरअ' नहीं जिस का एहतिमाम करें
नमाज़-ए-इश्क़ है ऐ दिल तो बे-वुज़ू ही सही
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
तिरे करम से बड़ा था कुछ ए'तिक़ाद मेरा
इसी लिए मुझ को फ़िक्र-ए-सोम-ओ-सलात कम थी
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
क़ासिद को यार के हों पयम्बर मैं कह रहा
ज़ाहिद सुनाएँगे सलवात इस कलाम पर