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ग़ज़ल
इसी ख़ातिर तो ये सिंफ़-ए-सुख़न मैं ने चुनी है
कि जो महसूस करता हूँ बताना चाहता हूँ
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
कुमार पाशी
ग़ज़ल
सिंफ़-ए-नाज़ुक को अगर देनी है इज़्ज़त दिल से दे
दर-गुज़र कर दे ख़ताएँ हुस्न-ए-ज़न की बात कर
शहनाज़ रहमत
ग़ज़ल
नज़्म हो या हो रुबा'ई कहिये या क़ित'आ जनाब
शा'इरी की सिंफ़ का शहबाज़ है उर्दू ग़ज़ल
आतिश मुरादाबादी
ग़ज़ल
किसी भी सिंफ़ में ज़ह्न आप का चले न चले
क़लम है हाथ में बस ख़्वा-मख़्वाह लिख लीजे
मोहम्मद तारिक़ ग़ाज़ी
ग़ज़ल
ज़िंदगी की राहों में फूल मुस्कुराते हैं
लोग सिंफ़-ए-नाज़ुक से क़ुर्बतें बढ़ाते हैं